शनि से सीसा, लोहा, अनाज, मृत चीजें (खाल और खाल), आलसी लोग, नौकर, नीच लोग, गरीब आदमी, त्याग आदि का संकेत मिलता है। शनि मीनारों, कोयले के व्यापारियों और अन्य कॉम-व्यापारियों के लिए निरूपित करता है। वह प्लंबर व चौकीदार हैं। शनि कठिन श्रम को इंगित करता है।
शनि पत्थर को दर्शाता है। यदि इसका प्रभाव लग्न, लग्न के स्वामी आदि पर पड़ता है, तो सड़क बनाने, पत्थर की आपूर्ति में संलग्न हो सकता है। शनि कृषि का एक कारक ग्रह है। उदाहरण के लिए, यदि यह चौथे घर पर शासन करता है तो व्यक्ति कृषि के माध्यम से कमा सकता है। शनि भूमि और सम्पदा का एक महत्व है। जब यह चौथे भाव पर शासन करता है या योगकारक होता है तो यह इसी भाव से जुड़ी संपत्ति या व्यवसाय देता है। शनि एक अधोमुख ग्रह है।
इसलिए यह सभी मामलों को छिपाए रखता है और गुप्त रखता है, जैसे कि खदान अयस्कों, पेट्रोल, तेल, कोयला, लोहा आदि। जब शनि चौथे भाव पर शासन करता है तो व्यक्ति इन चीजों के माध्यम से कमा सकता है। शनि चमड़े से जुड़े व्यवसाय को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, जब यह तीसरे या 8 वें भाव पर शासन करता है, तो व्यक्ति चमड़े के सामान और जूते के माध्यम से धन कमा सकता है। शनि किसान, खनिक, मेसन, स्वीपर, सेक्स्टन, टान्नर, एस्टेट एजेंट, डायर, प्लम्बर, मोची, मेहतर, कुम्हार, कोयला व्यापारी हैं, जो कमोडिटी में काम करते हैं से संबंधित कार्य क्षेत्र का सूचक है।
लग्न भाव के भाव सबसे अधिक महत्व द्शम स्थान को दिया गया है। यह सर्वविदित है कि व्यक्ति का जन्म एक पूर्व निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हुआ है। वह उद्देश्य क्या होगा? इसकी व्याख्या दशम भाव अर्थात कर्म भाव करता है। दशम भाव कर्म स्थान है और आय प्राप्ति का मुख्य साधन इसी भाव से जाना जा सकता है। इस भाव के कारक भाव शनि ग्रह है। इसीलिए किसी व्यक्ति की आजीविका, नौकरी और काम धंधे का विश्लेषण करने के लिए कर्म भाव के साथ साथ शनि ग्रह का भी अध्ययन अवश्य किया जाता है। किसी व्यक्ति की आजीविका के बारे में शनि ग्रह बहुत कुछ कहता है। दशम भाव यश-सम्मान का भाव है। इस भाव से शनि का संबंध बनना व्यक्ति को कर्मप्रधान तो बनाता ही है साथ ही इस भाव और शनि से व्यक्ति की मेहनत और कार्यक्षमता का विचार किया जाता है।
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अनुभव में पाया गया है कि कोई व्यक्ति नौकरी करेगा या नौकरी करेगा यह दशम भाव से जाना जाता है। जन्मपत्री में शनि यदि उच्च राशिस्थ हो या उच्च राशि के निकट हो तो उसके नौकरी कराने की संभावनाएं अधिक बनती है। इसी प्रकार शनि का मूलत्रिकोण राशि या स्वराशि में होना व्यक्ति को उच्चस्तर का कारोबारी बनाता है। शनि तुला राशि में उच्च और मेष राशि में नीचस्थ होता है। तुला राशि शुक्र की राशि है, भोग-विलास, संतुलन और सुख-सुविधाओं से संबंधित राशि है इस राशि में शनि अपना मूलतत्व सेवा भाव खो देता है, ऐसे में जातक स्वयं कार्य न करके दूसरों से बेहतर ढ़ंग से कार्य कराने की योग्यता रखता है।
इसके विपरीत यदि वह मंगल की मेष राशि में हो या मीन में हो तो व्यक्ति स्वयं कार्य निपटाने का प्रयास अधिक करता है, दूसरों के किए कार्यों से उसे आत्मसंतुष्टि नहीं मिल पाती है। इस स्थिति में वह स्वयं ही कार्य पूरा कर संतुष्ट होना चाहता है। मकर और कुम्भ राशि क्योंकि उसकी स्वयं के स्वामित्व की राशियां है इसलिए इन राशियों में भी शनि व्यक्ति को उत्तम स्तर का सेवक न बनाकर पेशेवर बनाता है।
यूं तो किसी भी व्यक्ति को उसका कार्यक्षेत्र, आजीविका, आय का साधन उसके स्वयं की शैक्षिक योग्यता, शिक्षा और अनुभव के अनुसार ही प्राप्त होती है। किसी व्यक्ति की आजीविका का निर्धारण करने में शनि ग्रह खास भूमिका निभाता है। दशम भाव से दशम सप्तम भाव है, इन दोनों भावों को कर्म निर्धारण के लिए देखा जाता है। कर्म का फल आय के रुप में प्राप्त होता है, जिसे हम आय भाव से प्राप्त करते है। और व्यक्ति को आय का सुख संचित धन के रुप में मिलता है। द्वितीय भाव संचित धन का भाव है और कर्म करने के बाद, प्राप्त आय में से जो कुछ बचता है, वह द्वितीय भाव से जाना जाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अष्टम भाव में हो तो वह कर्म भाव, संचय भाव और पंचम भाव को एक साथ जोड़ता है।
भूतपूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा जी की कुंडली में यह योग देखा जा सकता है। गुलजारी लाल जी की कुंड्ली मेष लग्न और धनु राशि की है। शनि वृश्चिक राशि में अष्टम भाव में स्थित है। लग्न भाव में मंगल इन्हें उच्च कोटि की नेतॄत्व क्षमता दे रहा है। अष्ट्म भाव में स्थित शनि ने इन्हें दीर्घायुवान, रिसर्च करने की बुद्धि और आपात स्थितियों में देश के सर्वोच्च पद पर विराजित किया। निचले तबके लिए इन्होंने अनेक बार संघर्ष किया, कानून की पढ़ाई की और सरल-सादा जीवन व्यतीत किया। अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के पद पर कई वर्षों तक कार्य किया। यह सब इनकी कुंड्ली से देखा जा सकता है।
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