मैरी कॉम - गोल्ड गर्ल


अपनी महान उपलब्धियों से भारत वर्ष का नाम सम्पूर्ण विश्व में गौरवांवित करने वाली महिला का नाम मैरी कॉम है। साधारण पृष्ठभूमि में जन्म लेकर महानता के आसमां पर चमकने वाली मैरी कॉम आज समस्त भारत और विशेष रुप से भारत की महिलाओं के लिए प्रेरणा स्र्तोत बन चुकी है। सफलता का परचम लहराने वाली मैरी कॉम का जीवन बहुत कभी सरल नहीं रहा, कई उतार-चढ़ाव की पगडंडियों से होता हुआ आज यह इस मुकाम तक पहुंचा है। 

ये एक मात्र ऐसी भारतीय महिला बॉक्सर हैं जो 6 बार वर्ल्ड बॉक्सर चैम्पियनशीप में गोल्ड मैडल जीत चुकी है। आज भारत में महिला बॉक्सिंग का दूसरा नाम है मैरी कॉम। बॉक्सिंग उनकी जिंदगी बन चुकी है, जिसे वे एक जुनून की तरह जी रही हैं। वे सुपर मॉम के अपने पारिवारिक किरदार के साथ बॉक्सिंग में भी देश का नाम रोशन कर रही हैं।
"छ: बार की वर्ल्ड चैंपियन, तीन बच्चों की मां भारतीय महिला मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम ने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीत ली हैं" यह खबर 24 नवम्बर 2018 को हर न्यूज चैनल, अखबार और पत्रिका की शोभा बढ़ा रही थी। इसी के साथ ही मैरी काम सबसे अधिक बार विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली दुनिया की पहली महिला बॉक्सर बन गई।
एक गरीब, पिछड़े और सुविधाओं से हीन परिवार से निकल कर विश्व में अपना नाम रोशन करना किसी के लिए भी सहज नहीं हैं। मंजिल तक पहुंचने का मार्ग मैरी कॉम के लिए भी कांटों भरा था। स्वयं को आज इस स्थान तक लाने के लिए मैरी कॉम को बहुत मेहनत करनी पड़ी,   
कदम-कदम पर पुरानी रुढ़ियों, रीति-रिवाजों और परंपरावादी सोच का सामना पड़ा, संकीर्ण समाज के विरोध को झेलना पड़ा और यहां तक की परिवार से लड़ना भी पड़ा। तब जाकर मैरी कॉम यहां पहुंची है। सचमुच मैरी कॉम का जीवन संघर्ष करके अपना पथ स्वयं प्रशस्त करने की प्रेरणा देता है। मणिपुर के छोटे से गाँव में, विपन्न परिवार में जबरदस्त विरोध के बावजूद कड़ी मेहनत, सच्ची लगन और अदम्य इच्छाशक्ति का परिचय देकर मैरी कॉम ने बॉक्सिंग की राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त कर भारत का मान बढ़ाया है।
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम (एम सी मैरी कॉम)  अर्थात मैरी कॉम के जीवन की गाथा भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं रहीं। यह जीवनगाथा एक जाँबाज खिलाड़ी की प्रेरणाप्रद जीवनगाथा हैं, जो न जाने कितनी अनजानी-अपरिचित प्रतिभाओं को अपना लक्ष्य प्राप्त करने का द्वार खोलेगी। इसी उद्देश्य से आज हम सभी इस गोल्डन गर्ल की जीवन यात्रा का आनंद लेंगे। एक गरीब किसान की चार बच्चे थे। 
मैरी कॉम अपने परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी, इसलिए इन्हें पढ़ाई के शुरुआती दिनों से ही पढ़ने के साथ-साथ, छोटे भाई-बहनों की देखभाल करती और माता-पिता को कार्यों में सहयोग भी करती। जैसे-तैसे स्नातक स्तर तक की पढ़ाई पूरी की। तीन बच्चों की मां होने के बावजूद आज अपने बलबूते पर मैरी कॉम विश्व में सबसे अधिक बार गोल्ड मैडल जीतने वाली एक मात्र महिला हैं। 
इनके जीवन चरित्र पर साल 2014 में एक फिल्म भी बनाई गई। जिसमें इनका किरदार प्रियंका चोपड़ा ने बाखूबी निभाया। मंझी हुई अदाकारी और प्रेरणात्मक कथा के चलते यह फिल्म बेहद सफल रही। दर्शकों ने मैरी कॉम के बुलंद हौसलें और प्रियंका चोपड़ा के अभिनय की सराहना आलोचकों ने भी की।
मैरी कॉम को पढ़ने से अधिक खेलों में रुचि थी। बचपन से ही एथलीट बनने का ख्वाब इनकी आंखों में पलता रहा, स्कूल टाईम से ही फुटबाल और इसी के जैसे अन्य खेलों में भाग लेने का अवसर मैरी कॉम नहीं छोड़ती थी। फिर भी इन्होंने स्कूल टाईम में कभी बॉक्सिंग खेल खेला ही नहीं था। 1998 में बॉक्सिंग फिल्ड में एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीतने वाले डिंगको सिंह की बॉक्सिंग को देखकर मैरी कॉम बहुत प्रभावित हुई। 
एक बार जो अचानक से मैरी ने डिंगको सिंह को बॉक्सिंग करते हुए देखा तो इनके मन में बॉक्सिंग खेल खेलने की जिज्ञासा ने जन्म लिया। बस फिर क्या था, मैरी कॉम स्वभाव से जिद्दी तो थी ही, दॄढ़ निश्चयी भी थी, और वो बॉक्सिंग को अपना करियर बनाने का ठान चुकी थी। मन की भूमि पर निश्चय का जो बीज पनप चुका था, उसे पल्लवित होने के लिए मैरी कॉम की मेहनत, परिवार के सहयोग और धन रुपी खाद की आवश्यकता थी परन्तु यह किसी चुनौती से कम नहीं था। 
इसमें सबसे पहली और सबसे बड़ी चुनौती थी, घर वालों को इसके लिए राजी करना । छोटी जगह के साधारण संकीर्ण समाज का हिस्सा होने के कारण घर-परिवार यह मानता था कि यह खेल महिलाओं के लिए बना ही नहीं हैं, इसे सिर्फ पुरुष ही खेल सकते हैं। प्रारम्भ में तो परिवार ने ही मैरी कॉम को समझाने की बहुत कोशिश की, ऐसा संभव नहीं हैं। मैरी कॉम कहां मानने वाली थी, वह तो मन में ठान चुकी थी, उसे तो रास्ते में आने वाली मुश्किलें, बाधाएं और लोगों की बातें दिखाई-सुनाई ही नहीं दे रही थीं, वह तो अर्जुन की तरह सिर्फ चिंड़िया की आंख ही देख रही थी। उसकी इसी संकल्पशक्ति ने मैरी कॉम को उसके जीवन लक्ष्य तक पहुंचाया।
अपने ख्वाबों को यथार्थ की जमीं देने के लिए मैरी कॉम सब कुछ करने के लिए तैयार थी। मैरी कॉम जानती थी कि इस खेल को खेलने के लिए माता-पिता की सहमति नहीं मिलने वाली हैं, इसलिए सहमति का इंतजार किये बिना, उसने अपनी ट्रेनिंग शुरु कर दी। इसी दौरान उसने एक बार लड़कियों को लड़कों से बॉक्सिंग करते देखा, इससे उसके ख्वाबों को और हवा मिल गई, कल तक जो सपने आंखों में कैद थे आज वो उड़ान भरने के लिए पंख फड़्फड़ाने लगे। यहां से बॉक्सिंग करने के विचारों और परिपक्व हो गए। अपने इस ख्वाब को हकीकत का जामा पहनाने के लिए उसने अपने राज्य के बॉक्सिंग कोच एम नरजीत सिंह जी से आग्रह किया कि वो इन्हें बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दें।
खेल के प्रति मैरी कॉम की रुचि, जूनून और समर्पण भाव के चलते ये कई घंटों अभ्यास करती रहती। परिवार को बिना बताए ही मैरी कॉम अपने लक्ष्य की तस्वीर में रंग भरती रहीं। दो साल इसी तरह ट्रेनिंग लेते रहने के बाद इन्होंने साल 2000 में महिला बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में भाग लिया और यह चैम्पियनशीप जीत कर बॉक्सर का अवार्ड हासिल किया। सफलता की यह खबर जब प्रसिद्ध अखबारों की सूर्खियां बनी तो इनके परिवार को इनके बॉक्सर बनने की जानकारी मिली। 
ऐसे में परिवार भी इनकी जीत की खुशी का हिस्सा बना। एक बार जो मैरी कॉम ने जीत का स्वाद चखा तो उसके बाद इन्होंने मूड कर नहीं देखा, इसके बाद इन्होंने पश्चिम बंगाल में आयोजित वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में गोल्ड मैडल जीत कर अपने राज्य का नाम एक बार फिर से ऊंचा किया। एक के बाद एक सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए आज मैरी कॉम बॉक्सिंग  के खेल के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच चुकी हैं। 2000 से अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुआत करने वाली मैरी कॉम ने अपने बॉक्सिंग खेल के जीवन में निम्न उपलब्धियां हासिल कि जो इस प्रकार हैं-
मैरी कॉम को कई अवार्ड मिल चुके है जिसमे में से कुछ बड़े अवार्ड  -

१। राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड 2009 में
२। पदम भूषण 2013 में
३। पदम श्री 2006 में 
प्रमुख उपलब्धियाँ
2001 में एआईबीए व‌र्ल्ड वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2002 में एआईबीए व‌र्ल्ड वुमन्स सीनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2003 में एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2004 में ताईवान में आयोजित एशियन वुमन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2005 में एआईबीए वुमन्स व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2006 में एआईबीए व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2008 में चीन में आयोजित व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2010 में एआईबीए व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
2010 एशियाई खेलों में कांस्य पदक
2012 लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक
2014 एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक
2018 एशियन खेलों में स्वर्ण पदक
मैरी कॉम की कुंडली कुम्भ लग्न
आईये देखे की मैरी काम की जन्मकुंडली में ऐसे कौन से योग थे, जिन्होंने मैरी काम को दुनिया की सबसे सफल महिला बाक्सर बनाया -
जन्म विवरण
1 मार्च 1983, 06:11 शुगनु, मणिपुर राज्य
कुम्भ लग्न, कन्या राशि और उत्तराफाल्गुणी नक्षत्र में मैरी काम का जन्म हुआ। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेने के फलस्वरुप मैरी धार्मिक, कर्त्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, समाजसेवी तथा सौंपे हुए कार्य को पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ पूरा करने का प्रयास करती हैं। नक्षत्र प्रभाव ने ही इन्हें स्वतंत्रप्रिय प्रवृत्ति, अधीरता, हठी और गुस्सैल भी बनाया, तथापि ये दिल से साफ भी हैं। साथ ही इन्हें कठिन परिश्रम करने की योग्यता भी इसी नक्षत्र ने इन्हें दी। परिश्रम के बल पर ही इन्हें सफलता भी हासिल हुई।  
कुम्भ लग्न में सप्तमेश सूर्य की स्थिति इन्हें आत्मविश्वास से ओतप्रोत कर रही हैं। लग्नेश का नवम भाव में उपस्थित होना अपने आप में एक बहुत सुन्दर योग बनता है, खास कर के स्त्री जातकों के लिये। इसी योग ने इन्हें अपने पिता के साथ काफी स्वतंत्र व्यवहार दिया, मनमानी कर आगे बढ़ने को ये अग्रसर रही और बदले में पिता ने न सिर्फ आगे जाकर इनका समर्थन किया बल्कि इनकी सफलता पर स्वयं को गौरान्वित भी महसूस किया। लग्नेश का लग्न में उच्चस्थ होने के फलस्वरुप भाग्य का साथ मिला, यश-कीर्ति मिली और देश-विदेश की यात्राएं करने के अवसर प्राप्त होने के साथ साथ प्रसिद्धि भी हासिल हुई। 
इनकी कुंड्ली में विशेष बात यह हैं कि लग्नेश शनि उच्चस्थ, नवमेश शुक्र उच्चस्थ हैं, राहु पंचम भाव में उच्चस्थ और केतु एकादश भाव में उच्चस्थ है। नौ में से चार ग्रहों का उच्चस्थ होना इन्हें विश्वस्तर का एथिलीट बना रहा हैं। 
कुंडली में लग्न एवं लग्नेश की सुदृढ़ स्थिति व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य को प्रदर्शित करती है। अतः कुंडली में लग्न एवं लग्नेश का शुभ प्रभाव में होना, शुभ ग्रहों की दृष्टि में होना एवं अन्य प्रकार से बली होना एक अच्छे खिलाड़ी के लिए आवश्यक है। इनकी कुंडली में लग्न भाव में सूर्य की स्थिति लग्न भाव को बल दे रही हैं। लग्नेश शनि उच्च राशि में स्थित हैं। 
कुंडली का तीसरा भाव पराक्रम का स्थान है। एक खिलाड़ी में पराक्रम होना ही चाहिए। खेल के मैदान में अपने पराक्रम से ही विरोधी पर जीत हासिल की जा सकती है। अतः पराक्रम भाव एवं पराक्रम भाव का स्वामी भी कुंडली में बलवान एवं सुदृढ़ स्थिति में होने चाहिए। इनकी कुंडली में मंगल तृतीयेश और दशमेश हैं और मंगल पराक्रम के कारक ग्रह भी है।
दशमेश एवं तृतीयेश का धन भाव में उच्चस्थ नवमेश के साथ इन्हें जीवन में विशेष ऊचाईयों पर लेकर गया। पराक्रमेश शुभ भावों में हों, शुभ ग्रहों से युक्त हों और शुभ ग्रहों से दॄष्ट हों तो व्यक्ति को प्रयास से अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्ति होती हैं। यहां मंगल दूसरे भाव में, उच्चस्थ शुक्र के साथ, चंद्र, गुरु और राहु से दॄष्ट हैं। पराक्रम भाव पर उच्चस्थ केतु की पंचम दॄष्टि हैं। 
इस योग ने इन्हें अतिरिक्त पुरुषार्थ, बल, सामर्थ्य और मेहनत करने के स्वभाव दिया। इसके अतिरिक्त चतुर्थेश शुक्र का शुभ होकर बली होने से इन्हें जीवन में उच्च पद की प्राप्ति हुई। 2000 से इन्होंने बाक्सिंग के खेल में कदम रखा, उस समय इनकी पराक्रमेश और कारक मंगल की महादशा शुरु हुई। उस समय गोचर में शनि इनकी जन्मराशि से अष्टम भाव पर गोचर कर रहे थे, जिसके फलस्वरुप इनकी राशि पर शनि ढैय्या प्रभावी थी। आयेश गुरु का गोचर भी तीसरे भाव पर हो रहा था और आय भाव जिसे उन्नति, सफलता का भाव भी कहा जाता है वह भी गोचर में सक्रिय हो रहा था। 
इसके बाद इन्हें राहु की महादशा मिली जो अगस्त 2018 तक चली। यही समय मैरी काम के करियर जीवन के लिए स्वर्णिम रहा। उच्चस्थ राहु इनकी कुंड्ली में स्वनक्षत्र आर्द्रा में स्थित हैं। पंचम भाव में स्थित होकर राहु भाग्य भाव और आय भाव दोनों को प्रभावित कर रहा है। अगस्त 2018 से इन्हें गुरु की महादशा प्राप्त हुई है और वर्तमान में गुरु/गुरु की दशा चल रही हैं। गुरु आयेश हैं एवं दशम भाव में मित्र राशि में हैं। यह दशा भी इन्हें आने वाले समय में मान-सम्मान देगी।  



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