ग्रहों की कारक वस्तुएं


आत्मादि कारक

ग्रहों को कई कार्यो और विशेषताओं के अनुसार विभाजित किया गया है। आत्मादि कारक के माध्यम से किसी व्यक्ति की आत्मा और मन के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। जैसे- यदि किसी कुंड्ली में सूर्य बलवान हों तो व्यक्ति में आत्मबल अधिक होता है और चंद्र बलवान हों तो व्यक्ति का मन बलवान होता है। 


ग्रहों के कारक कुंडली में बलवान अवस्था में हों तो व्यक्ति में कारक विषय भी बलवान होंगे इसके विपरीत कारक के निर्बल होने पर व्यक्ति में संबंधित विषय कमजोर होता है। प्रश्न शास्त्र पद्वति में इसका प्रयोग किसी वस्तु के चोरी होने पर चोर की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता हैं। विभिन्न ग्रहों के आत्मादिक कारक इस प्रकार हैं- सूर्य - आत्मा, चंद्रमा - मन, मंगल - बल, बुध - वाणी, गुरु - ज्ञान, शुक्र - कामवासना, शनि-दु:ख का कारक ग्रह हैं।

अब ग्रहों के रंगों के बारे में जानते हैं- सूर्य नारंगी रंग का कारक ग्रह हैं, चंद्रमा को क्रीम रंग दिया गया हैं, मंगल को लाल रंग, बुध को हरा, गुरु को पीला, शुक्र को सफेद और शनि को काला और एक अन्य मत से नीला रंग दिया गया हैं।

जन्मपत्री में ग्रहों को शुभता देने के लिए संबंधित ग्रह का रंग धारण करने या संबंधित ग्रह के रंग की वस्तुओं का दान करने की सलाह दी जाती हैं। दिशाओं में सूर्य, चंद्र, शुक्र सात्विक ग्रह हैं। शुक्र और बुध को राजसिक ग्रह कहा गया हैं, मंगल और शनि को तामसिक ग्रहों की श्रेणी में रखा गया हैं।

इसी प्रकार ग्रहों को स्थान भी दिए गए हैं। जैसे- सूर्य को मंदिर का स्थान दिया गया हैं, चंद्र को जलीय स्थान, मंगल को आग्नेय स्थान, बुध को क्रीड़ा स्थल, गुरु को कोषागार, शुक्र को शयनकक्ष और शनि को गंदे स्थान का कारक ग्रह कहा गया हैं। ॠतुओं में शुक्र को बसंत, सूर्य और मंगल को ग्रीष्म, चंद्र को वर्षा, बुध को शरद, गुरु को हेमन्त और शनि को शिशिर ऋतु का प्रतिनिधित्व दिया गया है। स्वाद में सूर्य को कटु, चंद्र को लवणीय, मंगल को तिक्त, गुरु को मधु और शुक्र को खट्टा स्वाद दिया गया है। 

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जिस प्रकार किसी देश और राज्य विशेष का शासन व्यवस्था को सुचारु रुप से चलाने के लिए एक मंत्रीमंडल का गठन किया जाता है। ठीक उसी प्रकार नवग्रहों का भी मंत्री मंडल बनाया गया है। जिसमें सूर्य को सर्वोच्च पद देते हुए राजा का स्थान दिया गया है।

चंद्र को मंत्री पद, मंगल को सेनापति का पद, बुध को राजकुमार का स्थान, गुरु एवं शुक्र को सलाहकार का स्थान दिया गया है और शनि को सेवक बनाया गया है। अब बात करें इन्द्रियों पर ग्रह अधिकार की तो सूर्य और मंगल को रुप, चंद्र एवं शुक्र को रस, बुध को गंध, गुरु को शब्द और शनि को स्पर्श इंद्री अधिकार स्वरुप दी गई है।

जन्मपत्री में ग्रहों की स्थिति तीन प्रकार की हो सकती हैं। प्रथम ग्रह शुभ होकर शुभफलकारी हों, पीड़ित होने के कारण अशुभफलकारी हों और कमजोर होने के कारण फल देने में असमर्थ हों। बली और शुभ अवस्था में स्थित ग्रहों के पूर्ण फल पाने के लिए रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। जैसे- सूर्य के लिए माणिक्य, चंद्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद और केतु के लिए लहसुनिया रत्न धारण किया जाता है।

कोई भी रत्न तभी अपना पूर्ण फल देता है जब वह सही धातु में धारण किया जाएं। सभी ग्रहों को कारक के रुप में कुछ धातुएं भी निर्धारित की गई है। जैसे- मंगल और सूर्य को तांबा, चंद्र और शुक्र को चांदी, बुध को कांस्य, गुरु को सोना और शनि को लोहा, राहु/केतु को शीशा धातु का कारक बनाया गया है।

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