बालादि अवस्था
बालादि अवस्था से अभिप्राय: ग्रह के अंशों के आधार पर फलादेश करने से हैं। इस अवस्था में प्रत्येक अवस्था को 6 अंश दिए गए हैं। राशियों को सम और विषम राशियों के आधार पर दो भागों में बांटा गया है। इस प्रकार ग्रह की अवस्थाएं निम्न प्रकार से होती हैं-
ग्रह यदि विषम राशि में 0 से 06 अंश तक स्थित हों तो इसे ग्रह की बालावस्था कहते है। बालावस्था में ग्रह का सिर्फ चौथाई फल मिलता है। यदि 6 से 12 अंश के साथ ग्रह विषम राशि में स्थित हो तो यह अवस्था कुमार अवस्था कहलाती हैं। कुमारावस्था में ग्रह आधा ही फल दे पाता है।
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विषम राशि में ग्रह 12 से 18 अंश के मध्य हो तो वह युवावस्था में कहलाता है। इस अवस्था में ग्रह अपना पूरा फल देता है। साथ ही ग्रह विषम राशि में 18 से 24 अंश के साथ स्थित हों तो ग्रह वृद्धावस्था में कहलाता है। इस अवस्था में वह अपने मामूली फल ही दे पाता है।
इसके अतिरिक्त 24 से 30 अंश के साथ विषम राशि में ग्रह स्थित हों तो ग्रह की अवस्था मृतावस्था कहलाती हैं। मृतावस्था में स्थित ग्रह का शून्य फल मिलता है। आईये अब सम राशि में ग्रह 24 से 30 अंश के मध्य हों तो बाल अवस्था, 18 से 24अंश के मध्य हो तो कुमार अवस्था, 12 से 18 अंश के मध्य हो तो युवावस्था, 06 से 12 अंश के मध्य होने पर वृद्धावस्था और 00 से 06 अंश के साथ स्थित हो तो मृतावस्था में होता है।
जागृतादि अवस्था
महर्षि पराशर द्वारा बताई गई अवस्थाओं में तीसरी अवस्था जागृतादि अवस्था हैं। इस अवस्था को भी तीन भागों में बांटा गया है। जो इस प्रकार हैं- जागृता अवस्था में ग्रह स्थित हों तो अपने पूर्ण फल देता है। स्वप्न अवस्था में स्थित हों तो मध्यम फल तथा सुषुप्ति अवस्था में हों तो ग्रह शून्य फल देने की स्थिति में होता है।
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इस अवस्था में ग्रहों के अंशों को 10-10 अंशों के अंतराल में बांटा गया है। जैसे- ग्रह विषम राशि में 00 से 10 अंश में स्थित हों तो वह जागृत अवस्था में होता हैं, 10 अंश से 20 अंश के मध्य हों तो ग्रह स्वप्न अवस्था में होता हैं और 20 से 30 अंश के मध्य होने पर सुषुप्त अवस्था में होता है।
सम राशि में ग्रह यदि 20 से 30 अंश के साथ स्थित हों तो वह अवस्था जागृत अवस्था होती हैं, 10 अंश से 20 अंश के मध्य ग्रह सम राशि में होने पर ग्रह की अवस्था स्वप्न कहलाती है। 00 अंश से 10 अंश के मध्य सम राशि में स्थित होने पर ग्रह को सुषुप्त अवस्था में होता है।

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