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जाने और समझे पित्र दोष के कारण और निवारण के उपायों

हिंदू धर्म में श्राद्ध के दिनों को अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण माना जाता है। श्राद्ध के दिनों में पितरों की आत्‍मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। दैहिक, दैविक एवं भौतिक पापों से मुक्‍ति पाने का सबसे सरल और एकमात्र उपाय है श्राद्ध।



श्राद्ध 2018

भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्‍या में 16 दिनों तक श्राद्ध का विधान है। इस बार श्राद्ध कर्म 24 सितंबर से आरंभ होकर 8 अक्‍टूबर को समाप्‍त हो रहे हैं। मान्‍यता है कि श्राद्ध के दिनों में हमारे मृत परिजन धरती पर हमसे मिलने आते हैं।

श्राद्ध – पितृ पक्ष पूजा (24th September - 8th October 2018)


पुण्‍य की प्राप्‍ति का उपाय 

पितरों के लिए ब्रहृमा जी ने श्राद्ध पक्ष का निर्माण किया था। भगवान सूर्य के पुत्र यमराज ने 20 हजार सालों तक भगवान शिव की घोर तपस्‍या की थी और उनकी तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने उन्‍हें यम लोग एवं पितृ लोक का स्‍वामी बनाया था। मान्‍यता है कि जो लोग रोज़ पूजा-पाठ आदि नहीं करते हैं वो केवल श्राद्ध के दिनों में पितरों का तर्पण कर पुण्‍य की प्राप्‍ति कर सकते हैं।

96 अवसर हैं श्राद्ध के लिए 

बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि एक साल में 96 बार ऐसे अवसर आते हैं जब आप अपने पितरों को प्रसन्‍न करने के लिए उनका तर्पण कर सकते हैं। बारह महीने की 12 अमाव्‍या, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग के आरंभ की चार तिथियां, मनुवों के आरंभ की 14 मनवादि तिथ्यिां, 12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग, 12 व्‍यतिपात योग, 15 महालय श्राद्ध पक्ष की तिथियां, पांच अष्‍टका पांच अन्‍वष्‍टका और पांच पूर्वेद्युह, ये श्राद्ध के 96 अवसर हैं। पंडित या योग्‍य विद्वान से परामर्श कर आप इन शुभ अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।

किस तिथि पर किसका श्राद्ध होता है 
  • शास्‍त्रों के अनुसार महीने की जिस तिथि पर आपके परिजन की मृत्‍यु हुई हो इस महालय में उस तिथि पर ही पितरों का श्राद्ध किया जाता है। ऐसी कुछ विशेष तिथियां भी हैं जिनमें किसी भी प्रकार की मृत्‍यु वाले पितर का श्राद्ध किया जा सकता है। 
  • जिस स्‍त्री की मृत्‍यु उसके पति के जीवित रहते हुए हो जाए उनका श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। वहीं जो व्‍यक्‍ति मृत्‍यु से पूर्व ही सन्‍यास ले चुका हो उसका श्राद्ध एकादश श्राद्ध को किया जाता है। 
  • चतुर्दशी तिथि को शस्‍त्र आदि से मरे, आत्‍महत्‍या करने वाले और विष एवं दुर्घटना से मृत्‍यु लोक को प्राप्‍त हुए परिजनों का श्राद्ध किया जाता है। 
  • श्राद्ध की चुर्तदशी और अमावस्‍या की तिथि पर सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप, वज्रघात, अग्नि से जलमकर मरने वाले या पशु के प्रहार से मरने वाले या किसी भयंकर रोग से मरने वाले मृत परिजनों का तर्पण किया जाता है। अगर किसी मृत परिजन का मृत्‍यु उपरांत संस्‍कार नहीं हुआ है तो अमावस्‍या तिथि पर उनका तर्पण किया जाता है। 

ब्राह्मण के शरीर में आते हैं पितर 

कहा जाता है कि पितृ पक्ष यानि श्राद्ध के दिनों में यमलोक से सभी आत्‍माओं को अपने परिजनों से मिलने के लिए धरती पर भेजा जाता है। अंतरिक्ष गामी पितृ गण श्राद्ध के रिनों में ब्राह्मणों के साथ ही भोजन करते हैं। श्राद्ध में जिन ब्राहृमणों को भोजन करवाया जाता है पितृ गण उन्‍हीं के शरीर में आकर भोजन ग्रहण करते हैं। अगर पितर आपसे प्रसन्‍न हो जाते हैं तो आपको आशीर्वाद देकर पितृ लोग वापिस लौट जाते हैं।

सर्व पितृ अमावस्‍या पूजा - 8th October 2018


ब्राह्मण भोजन का शुभ मुहूर्त 

शास्‍त्रों में पितरों का स्‍वामी भगवान जनार्दन को बताया गया है और माना जाता है कि इन्‍हीं के शरीर के पसीने से तिल और रोम से कुश की उत्‍पत्ति हुई थी। यही कारण है कि तर्पण में अर्घ्‍य के समय तिल और कुश का प्रयोग किया जाता है।
श्राद्ध में ब्राह्मण भोज का सबसे पुण्‍यदायी समय कुतप, दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत 11 बजकर 36 मिनट से लेकी 12 बजकर 24 मिनट तक होता है। इस अवधि में श्राद्ध करने से पुण्‍य की प्राप्‍ति होती है।

पितृ क्‍यों पीते हैं अपने परिजनों का खून 
  • पुराणों में उल्लिखित है कि ‘श्रादं न कुरुते मोहात तस्‍य रक्‍तं पिबन्ति ते। इसका अर्थ है कि अगर श्राद्ध नहीं किया जाता है तो पितृ उनका रक्‍तपान करते हैं। 
  • पितरस्‍तस्‍य शापं दत्‍वा प्रयान्‍ति च। इसका अर्थ है जो व्‍यक्‍ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है उसे पितर पितृलोक अमावस्‍या तक प्रतीक्षा करके श्राप देकर वापिस लौट जाते हैं। 
  • पितरों के नाराज़ होने पर जीवन में कष्‍टों और समस्‍याओं का पहाड़ लग जाता है। अगर आप पितरों की कृपा प्राप्‍त कर अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बनाना चाहते हैं तो इस बार पितृ पक्ष में उनका तर्पण जरूर करें। 


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